नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि किसी व्यक्ति को “मियां-टियां” या “पाकिस्तानी” कहने को अनुचित माना जा सकता है, लेकिन यह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 298 के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता।
सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने आरोपी हरि नंदन सिंह को दोषमुक्त करते हुए यह टिप्पणी की। सिंह पर आरोप था कि उन्होंने एक सरकारी कर्मचारी को “पाकिस्तानी” कहकर अपमानित किया था। अदालत ने कहा कि यह टिप्पणी भले ही अशोभनीय हो, लेकिन इससे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कानूनी आधार नहीं बनता।
क्या था मामला?
शिकायतकर्ता एक उर्दू अनुवादक और सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत कार्यवाहक क्लर्क थे। जब उन्होंने आरोपी हरि नंदन सिंह को सरकारी दस्तावेज सौंपे, तो उन्होंने कथित रूप से शिकायतकर्ता के धर्म का हवाला देते हुए उन्हें “पाकिस्तानी” कहा और अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया।
इसके बाद सिंह के खिलाफ IPC की धारा 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 504 (शांति भंग करने के लिए जानबूझकर अपमान), 506 (आपराधिक धमकी), 353 (लोक सेवक को कर्तव्य से रोकने के लिए हमला) और 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
हालांकि, सत्र न्यायालय और राजस्थान उच्च न्यायालय ने आरोपी को धारा 298, 353 और 504 के तहत आरोपमुक्त करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
शीर्ष अदालत ने मामले की समीक्षा करते हुए कहा कि –
✔ IPC धारा 298: आरोपी का बयान धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए कानूनी तौर पर पर्याप्त नहीं था, इसलिए धारा 298 के तहत आरोप टिकते नहीं हैं।
✔ IPC धारा 353: आरोपी द्वारा शारीरिक बल प्रयोग का कोई सबूत नहीं मिला, इसलिए यह धारा लागू नहीं होती।
✔ IPC धारा 504: कोई ऐसा स्पष्ट कार्य नहीं था जिससे शांति भंग होने की आशंका हो, इसलिए यह धारा भी नहीं लगती।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को सभी आरोपों से बरी करते हुए कहा कि ऐसे शब्दों का प्रयोग गलत है, लेकिन यह कानूनन अपराध नहीं। अदालत ने निचली अदालतों के फैसलों को गलत ठहराते हुए सिंह को आरोपमुक्त कर दिया।