दिल्ली का गोल मार्केट। बंगाली स्वीट्स के पास एक छोटा-सा पार्क। वहां प्लास्टिक की कुर्सियां लगी हुई हैं, जिन पर कोई अधिकारी, कोई ठेकेदार, कोई सामाजिक कार्यकर्ता, और कोई आम आदमी बैठा है। चाय का एक छोटा सा खोखा है, जहां से सबको मुफ्त चाय मिल रही है। लेकिन यह कोई आम पार्क नहीं, बल्कि यह है बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव संजय विनायक जोशी का दरबार— ‘पार्क दरबार’।
यहां न कोई गेट पास चाहिए, न कोई लंबी सिक्योरिटी चेकिंग। न कोई चमचमाता कार्यालय है, न कोई भारी-भरकम स्टाफ। बस, एक आदमी आता है, सबसे मिलता है, उनकी समस्याएं सुनता है, और तुरंत समाधान के लिए फोन घुमा देता है—कभी किसी मुख्यमंत्री को, कभी किसी डीजीपी को, तो कभी किसी मुख्य सचिव को। और फिर, वह आगे बढ़ जाता है।
क्या है संजय जोशी का ‘पार्क दरबार’?
भारत की राजनीति में अक्सर देखा जाता है कि जब किसी नेता का राजनीतिक कद कम हो जाता है या उसे पार्टी में हाशिए पर डाल दिया जाता है, तो वह गायब हो जाता है। लेकिन संजय जोशी इस परंपरा को तोड़ते हैं। बिना किसी पद के, बिना किसी सरकारी शक्ति के, वह आज भी बीजेपी और प्रशासनिक गलियारों में उतने ही प्रभावशाली हैं, जितने कभी हुआ करते थे।
हर रोज़ दर्जनों लोग इस पार्क में आते हैं, अपनी समस्याओं के समाधान के लिए। किसी की नौकरी में अड़चन आई है, तो कोई सरकारी भुगतान रुकने से परेशान है। कोई अपनी ट्रांसफर को लेकर परेशान है, तो किसी का व्यापारिक मामला अटका पड़ा है। और फिर, एक शख्स—संजय जोशी—हर किसी की समस्या सुनते हैं, अपने सहायकों को इशारा करते हैं, और तुरंत फोन मिलाकर समाधान करवाते हैं।
यह वही संजय जोशी हैं जिन्हें एक समय बीजेपी का रणनीतिकार कहा जाता था। वह व्यक्ति, जिसने 90 के दशक में बीजेपी को बूथ स्तर पर संगठित किया। जिनकी संगठन क्षमता का लोहा खुद नरेंद्र मोदी और अमित शाह भी मानते थे। लेकिन फिर, अचानक उन्हें पार्टी से किनारे कर दिया गया।
बीजेपी के ‘सियासी संत’ को किसने किनारे किया?
कहा जाता है कि संजय जोशी और नरेंद्र मोदी के बीच लंबे समय से मतभेद रहे हैं। गुजरात में जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे, तब संजय जोशी वहां संगठन के प्रभारी थे। लेकिन 2005 में एक गहरी साजिश रची गई, जिसमें एक फर्जी सीडी कांड के जरिए संजय जोशी को पार्टी से बाहर कर दिया गया।
2012 में जब संजय जोशी को बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटाया गया, तब माना गया कि नरेंद्र मोदी और उनकी लॉबी ने उन्हें पूरी तरह सियासत से बाहर कर दिया। लेकिन सच्चाई यह थी कि संजय जोशी कभी राजनीति से दूर नहीं हुए।
पद नहीं, प्रचार नहीं, फिर भी इतनी ताकत क्यों?
आम तौर पर जब कोई नेता पद से हटता है, तो उसका प्रभाव खत्म हो जाता है। लेकिन संजय जोशी के साथ ऐसा नहीं हुआ।
- उनका ‘संघ’ से सीधा जुड़ाव आज भी बरकरार है।
- बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता अब भी उन्हें सम्मान देते हैं और सलाह लेते हैं।
- प्रशासनिक गलियारों में उनकी सिफारिशें आज भी मानी जाती हैं।
- उनके पास किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, डीजीपी तक सीधी पहुंच है।
आज भी अगर कोई व्यक्ति संजय जोशी के पास अपनी समस्या लेकर जाता है, तो उसका काम मिनटों में हो जाता है। यह बात पूरे बीजेपी संगठन में किसी से छिपी नहीं है। लेकिन बड़ा सवाल यह है—जब संजय जोशी की पकड़ आज भी इतनी मजबूत है, तो फिर बीजेपी उन्हें वापसी क्यों नहीं दिला रही?
‘गुजराती लॉबी’ और संजय जोशी का वनवास
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बीजेपी के भीतर ‘गुजराती लॉबी’ संजय जोशी को दोबारा उभरने नहीं देना चाहती। यह वही लॉबी है, जिसने लालकृष्ण आडवाणी को साइडलाइन किया, मुरली मनोहर जोशी को पीछे धकेला, और यशवंत सिन्हा व अरुण शौरी जैसे दिग्गजों को किनारे कर दिया। संजय जोशी भी इसी लॉबी का शिकार हुए।
लेकिन बीजेपी के ही कुछ नेता कहते हैं कि अब वक्त बदल रहा है।
- 2024 के चुनावों के बाद बीजेपी में बड़े बदलाव होने वाले हैं।
- संघ की रणनीति फिर से बदली जा रही है।
- संजय जोशी को फिर से मुख्यधारा में लाने की चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
सच्चे नेता का यही परिचय: जनता से सीधा जुड़ाव
जब कोई नेता सत्ता में होता है, तो उसके पास हजारों लोग आते हैं। लेकिन जब कोई नेता सत्ता से बाहर होता है और फिर भी लोग उससे जुड़े रहते हैं, तो इसका मतलब है कि वह वास्तव में जनता के लिए काम कर रहा था।
संजय जोशी का ‘पार्क दरबार’ इसी सच्चाई को साबित करता है।
- वह लोगों से मिलते हैं, उनकी समस्याएं सुनते हैं।
- किसी से पैसा नहीं लेते, किसी से एहसान नहीं मांगते।
- बस एक फोन लगाते हैं, और समस्या हल हो जाती है।
क्या यही असली राजनीति नहीं होनी चाहिए?
क्या यही सच्चे जनसेवा की परिभाषा नहीं है?
क्या संजय जोशी की वापसी होगी?
राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। वक्त का पहिया घूमता रहता है। संजय जोशी के लाखों समर्थक मानते हैं कि अब समय आ गया है जब संजय जोशी फिर से बीजेपी की मुख्यधारा में लौटेंगे।
“समय का पहिया तो चलता ही रहता है, कोई इससे कुचलता है, तो कोई इस पहिये पर सजे रथ पर सवार होकर अपने जहां का खुदा बन जाता है।”
आज गोल मार्केट का यह छोटा-सा पार्क सिर्फ एक ‘दरबार’ नहीं, बल्कि एक प्रतीक है—
- उस नेतृत्व का, जो बिना किसी पद के भी लोगों की सेवा करता है।
- उस सच्चे जनसेवक का, जिसे राजनीति ने भुला दिया, लेकिन जनता ने नहीं।
अब देखना यह है कि क्या संजय जोशी फिर से बीजेपी की रणनीति में शामिल होंगे? या फिर वह यूं ही एक ‘अज्ञात महायोद्धा’ की तरह जनता की सेवा करते रहेंगे?
शिखर पर वही लोग पहुंचते हैं, जिनकी जड़ें सबसे गहरी होती हैं। और संजय जोशी की जड़ें किसी कुर्सी की मोहताज नहीं हैं।
क्या बीजेपी में कोई नया अध्याय लिखने वाला है? यह वक्त ही बताएगा!
✍️ विवेक नौटियाल (फोन 8865835323)